Sunday, June 2, 2013

हम भी मांगते हैं , दे दीजिए

     दे दीजिये , क्यों जान खा रखी है ! कभी-कभी देश की भावनाओं का भी ख्याल रखा जाता है . दे देने में आपका जाता भी क्या है , जितना मूसना था मूस चुके ही हैं . अब गूदा खाने के बाद गुठली चिचोड़ने को चिरकुटई नहीं तो और क्या कहा जाएगा . शान से आगे आइए , प्रेस बुलाइए , मुस्कुराइए , उच्च नैतिक मूल्यों की दुहाई दीजिए और कह दीजिए हमें कोई लोभ नहीं पद का , हम तो सेवा करने आए थे वही किया भी  पर  दामाद मेवा काटने लगा तो इसमें हमारा क्या दोष !
     जनता भेंड है . शोर सुनकर सिर उठाएगी , कुछ देर अकनेगी फिर  मुंडिया कर चरने लगेगी . आप फिर लौट आइएगा। दे दीजिए ,श्रीनिवासन जी , इस्तीफा कोई इतनी बड़ी चीज थोड़े है।
     कभी पढ़ा था कि इस असार संसार में सार केवल श्वसुर के घर में ही होता है , इसलिए शंकर जी अपनी ससुराल कैलाश पर्वत पर पौढ़े रहते हैं और  विष्णु जी क्षीर सागर में। ये सब गुरु आदमी थे। जानते थे कि मुफ्त की मौज़ से बढ़कर संसार में कुछ नहीं। ससुराल में जब तक रहो सेवा लो और चलने का जी करे तो विदाई में मेवा अलग से।
     मैयप्पन भी गुरु आदमी है। पर जरा सा चूक गया। हो जाती है गलती कभी-कभी बच्चों से। वह अंदाज़ा नहीं लगा पाया कि बड़े दांतों की वज़ह से विन्दु का मुंह बंद नहीं रह पाता। अब खुला मुंह थोडा ज्यादा खुल गया तो दिक्कत पै गयी. कोई नहीं जी , तुसी सीमेंट वाले लोग हो , मजबूत जोड़ लगाते हो। विन्दु क्या और विन्दु की औकात क्या ! जोड़ का ही तो कमाल है , न भाजपा विरोध में है न कांग्रेस ; इलाकाई टटपूंजियों की तो बात ही क्या करनी !    
     दे दीजिए। मान भी लेते हैं कभी औरों का कहा।

    ...... अंदरूनी सूत्रों ने बताया है कि कुछ इसी तरह मनाने की कोशिश की जा रही थी आज सुबह बोर्ड की बैठक में।